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स्तवन-संग्रह। सेवग पिड़ तारे, द्वषनहो निगुणा संग वारै ॥१६॥ तेरी महिमा अदभुत कहिये, तेरे गुणाको पार न लहिये ॥तु प्रभु समरथ साहिब मोरा, हुँ मन मोहन सेवक तोरा ॥ १७ ॥ तूं त्रिलोकतणो प्रतिपाला, मे हु अनाथ तू दीन दयाला ॥ तुं शरणागत राखण धीरा, तुप्रभु तारक छै वड़वीरा ॥ १०॥ तुम जेसें वड़भागज पायो, तो मेरो कारज चड्यो सवायो॥ कर जोडी प्रभु वीनबुतोसु, करो कृपा जिनवरजी मोसु ॥२० जनमण मरण निवारो तारो, भवसायरथी पार उतारो ॥ श्रीहथणापुर मंडण सोहे, तिहां जिन शांति सदा मन मोहे ॥ २१ ॥ पद्मसूरि गुरुराज पसाय, श्रीगुणसागरके मन भायै ॥ जे नर-नारी इक चित गावै, मन वांछित फल निश्च पावै २१
इति श्रीशांतिनाथ-स्तवनं ॥
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