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अभय रत्नसार।
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मणं कीजें श्रीकार, ज्ञाननां उपगरण इग्यार इग्यार ॥ करो काउसग्ग गुरु पाये पड़ी ॥ मा० १० देहरे स्नात्र करीजें वली, पोथी पूजीजे मन रली ॥ मुगतिपुरी कीजें टूकड़ी ॥ मा० ॥ ११ ॥ मौन इग्यारस महोटु पर्व, आराध्यां सुख लहिये सर्व ॥ व्रत पञ्चक्खाण करो आखड़ी ॥ मा० ॥ १२ ॥ जेसल शोल इक्याशी समे, की स्तव न सहू मन गमे ॥ समयसुदर कहे करो द्याहड़ी मा०॥ १३ ॥
॥श्रीशांतिनाथजी का स्तवन ॥
श्रीसारद मात नमू सिरनामी, हुं गाउं त्रिभुवनके स्वामी ॥ संतहि संत जपै सब कोई, जां घर शांति सदा सुख होई ॥१॥ शांति जपी ने कोजै कांमा, सोई काम हुवै अभिरामा ॥ शांति जपी परदेश सिधावै, ते कुशले कमला ले आवे॥२॥ गर्भथकी प्रभु मारि निवारी, शांतहि नाम दियो महतारी ॥ जे नर शांति तणा
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