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स्तवन- संग्रह |
कल्याण, जनम दीक्षा ने केवलज्ञान ॥ अर दीक्षा लीधी रुवड़ी | मा० ॥ २ ॥ नमिने ऊपनुं केवलज्ञान, पांच कल्याणक अति परधान | ए तिथिनी महिमा एवडी || मा० ॥ ३ ॥ पांच भरत ऐरवत इमहीज, पांच कल्याणिक हुवे तिम हीज, पंचासनी संख्या परगड़ी ॥ मा० ॥ ४ ॥ अतीत अनागत गणतां एम, दोंढशें कल्याणक थाये तेम ॥ कुरण तिथ के ए तिथि जेवड़ी | मा० ॥ ५ ॥ अनंत चोवीशी इण परें गियो, लाभ अ नंत उपवासा तणो ॥ ए तिथि सहु तिथि शिर राखड़ी | मा० ॥ ६ ॥ मौनपणें रह्या श्रोमल्लिनाथ, एक दिवस संयम व्रत साथ || मौन तणी परी व्रत इम पड़ी ॥ मा० ॥ ७ ॥ अठ पुहरी पोसो लीजियें, चोविहार विधिशु कीजियें ॥ पण परमाद न कीजें घडी ॥ मा० ॥८॥ वरस इग्यार कीजें उपवास, जावजीव पण अधिक उल्हास ॥ ए तिथि मोक्ष तणी पावड़ी ॥ मा० ॥ ॥ ऊज -
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