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अभय रत्नसार ।
॥ विमलनाथजी का स्तवन ॥ ॥ घर अंगण सुरतरु फल्यो जी, कवण कनक फल खाय ॥ गयवर बांध्यो बारणें जी, खर किम वेदाय ॥ १ ॥ विमल जिन महारी तुम्हशु प्रीति, सुर सकलंकितशु मिल्याजी, हियडुं ह्रींसे केम ॥वि० ॥ २ ॥ मन गमता मेवा लही जी, कुण खड खावा जाय ॥ आदर साहिबनो लही जी, कुण ल्ये शंक मनाय ॥ वि० ३ रत्न छते कुण काचनें जी, अलवे पसारे हाथ ॥ कुरण सुरतरुथी ऊठिनें जी, बावल घाले बाथ ॥ वि० ॥ ४ ॥ देव अवर जो हु करू जी, तो प्रभु तुमची आण ॥ श्रीजिनराज भवो भवें जी, तुंहिज देव प्रमाण || वि० ॥ ५ ॥ ॥
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॥ मौन - एकादशीका स्तवन ॥
॥ समवसरण बेठा भगवंत, धरम प्रकाशे श्री अरिहंत ॥ बारे परषदा बैटी जुड़ी, मागशिर शुदि इग्यारश बड़ी ॥ १ ॥ मल्लिनाथना तीन
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