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स्तवन-संग्रह। श्रवण सुणी गुण ताहरा-माहरां, विकस्यां अंगो अंग ॥३॥ सो० ॥ अ० ॥ दूरथकी हु आयो वहिने, देव लह्यो दीदार ॥ प्रारथियां पहिडे नहिं साहिबा, एह उत्तम आचार ॥ ४ ॥ सो० ॥ अ० प्रभु मुखचंद विलोकित हरषित, नाचत नयन चकोर ॥ कमल हसे रवि देखिने जिम, जलधर आगम मोर ॥ ५॥ सो० ॥ १०॥ किसके हरि हर किसके ब्रह्मा, किसके दिलमें राम ॥ मेरे मनमें तु वसे साहिब, शिवसुखनोही ठाम ॥ सो० ॥ अ०॥ ६॥ माता वामा धन्य पिता जसु श्रीअश्वसेन नरेस ॥ जनमपुरी वणारसी, धनधन काशीनो देश ॥ सो० ॥ अ०॥७॥ संवत सतरेश बावीशें, वदी वैशाख वखाण ॥ आठम दिन भले भावशु, मारी जात्र चढी परिणाम ॥ सो० ॥ अ० ॥८॥ सानिध्यकारी विघ्ननिवारी पर उपगारी पास ॥ श्रीजिनचंद जूहारता, मोरी सफल फली सहु आश ॥ सो० ॥ अ० ॥ ६ ॥
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