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अभय रत्नसार।
२७१ मति अठावीश श्रुत चवदे वीश, अवधि छ असंख्य प्रकार रे॥ दोय भेद मनःपर्यव दाख्यं केवल एक प्रकार रे ॥ ५० ॥३॥ चंद-सूरज ग्रह-नक्षत्र तारा, तेशं तेज आकाश रे॥ केवलज्ञान समु नहिं कोई, लोकालोक प्रकाश रे ॥ ५० ॥४॥ पार्श्वनाथ प्रसाद करीने, महारी पूरो उमेद रे॥ समयसुदर कहे हुं पण पामु, ज्ञाननो पंचमो भेद रे॥५०॥५॥
पाश्व प्रभुका स्तवन ।। ॥ अमल कमल जिम धवल विराजे, गाजे गोडी पास ॥ सेवा सारे जेहनी सुर-नर मन धरिय उल्लास ॥ १॥ सोभागी साहिब मेरा वे, अरिहा सुग्यानी पास जिणंदा वे ॥ ए आंकणी सुंदर सूरति मूरति सोहे, मो मन अधिक सुहाय ॥ पलक पलकों पेखतां मानुनव नविय छविय देखाय ॥२॥ सोभा०॥ अ०॥ भव-दुःख भंजन जन-मनरंजन, खंजन नयनशु रंग ॥
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