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स्तवन-संग्रह। रे॥पां० ॥ ४॥ जिण दिन पांचमि तप करो, तिण दिन आरंभ टालो रे॥ पांचमि स्तवन थुई कहो, ब्रह्मचरिज पिण पालोरे॥ पां०॥५॥ पांच मास लघुपंचमी, जावजीव उत्कृष्टी रे ॥ पांच वरस पांच मासनी, पांचमि करो शुभ दृष्टि रे ॥ पा०॥६॥
॥तीसरी ढाल उल्लाला की देशो ॥ हिव भवियण रे पांचमी उजमणो सुणो, घर सारू रे वारू धन खरचो घणो ॥ ए अवसर रे आवंतां वलि दोहिलो, पुण्य जोगें रे धन पामंतां सोहिलो ॥ उल्लालो॥ सोहिलो वलिय धन पामतां पण धर्मकाज किहां वली, पांचमी दिन गुरु पास आवी कीजीयें काउस्सग्ग रली ॥ त्रण ज्ञान-दरिसण चरण टीकी देइ पुस्तक पूजिये, थापना पहिली पूज केसर सुगुरु सेवा किजिये ॥ १॥ ढाल ॥ सिद्धांतनी रे पांच प्रति वीटांगणां, पांच पूठां रे मखमल सूत्र प्रमुख
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