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अभय रत्तसार।
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तणां ॥ पांच डोरा रे लेखण पांच मजीसणा, वासकंपा रे कांबी वारू वतरणां ॥ उल्लालो॥ वतरणां वारू वलीह कमली पांच झिलमिल अति भली, स्थापनाचारिज पांच ठवणी मुहपत्ती पड - पाटली॥ पटसूत्र पोटी पंच कोथल पंच नवकर वालियां, इण परें श्रावक करे पांचम उजमणं उजवालियां ॥२॥ ढाल ॥ वलि देहरे रे रात्र महोत्सव कीजियें, घर सारू रे दान वलो तिहां दीजियें ॥ प्रतिमानी रे आगल ढोवणं ढोइये, पूजानां रे जे जे उपगरण जोइयें ॥ उल्लालो॥ जोइयें उपगरण देवपूजा काज कलशभृगार ए, आरति मङ्गलथाल दीवो धूपधाणुं सार ए ॥ धनसार केशर अगर सुखड अंगलूहणं दीस ए, पंच-पंच सघली वस्तु ढोवो सगतिशं पचवीश ए ॥३॥ ढाल ॥ पांचमिना रे सहाम्मी सर्व जिमाडिये, रात्रि जोगे रे गीत रसाल गवाडीये ॥ इण करणी रे करतां ज्ञान आराधिये, ज्ञान दरिसणरे
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