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अभय रत्नसार ।
२६७ कोड़ वरस कहीं ए ॥ ६ ॥ ज्ञान तणो अधिकार, बोल्या सूत्र मझार ॥ किरिया छे सही ए, पण पाछे कही ए॥७॥ किरिया सहित जो ज्ञान हवे तो अति परधान ॥ सोनो ने सूरो ए, शंख दूधैं भरयो ए॥८॥ महानिशीथ मझार, पांचमि अक्षर सार ॥ भगवंत भांखीयो ए, गणधर साखियो ए ॥६॥
॥ दूसरी ढाल कालहरा की देशी॥ पांचर्चाम तप विधि सांभलो, जिम पामो भवपारो रे॥श्रीअरिहंत इम उपदिशे, भवियणने हितकारो रे॥ पां०॥ १॥ मिगसर माह फागुण भला, जेठ आषाढ़ वैशाखो रे ॥ इण षट मासे लीजिये, शुभदिन सदगुरु साखो रे॥पां० ॥२॥ देव जुहारी देहरे, गीतारथ गुरु वंदी रे ॥ पोथी पूजो ग्याननी, सगति हुवे तो नंदी रे॥पॉ०॥३॥ बे कर जोडी भावशु, गुरु मुख करो उपवासो रे॥ पांचमि पडिकमणो करो, पढो पंडित गुरु पासो
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