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२६६ स्तवन-संग्रह। समृद्धि कारण, दुरित वारण, सुख करो ॥ उवझाय वर श्री, भक्तिलाभे, थुण्यो श्री, सीमंधरो॥ जय जयो जगगुरु, जीव जीवन, करी सामि, मया घणी ॥ कर जोड़ि वलि वलि, वीनवू प्रभु पूर आशा मन तणी ॥ १८॥
॥पंचमी वृद्ध स्तवन ॥ प्रणमुश्रीगुरु पाय, निर्मल ज्ञान उपाय॥ पांचमि तप भणुए, जन्म सफल गिणु ए ॥१ चउवीसमो जिनचंद, केवल ज्ञान दिणंद ॥ त्रिगडे गहगह्यो ए, भवियणने कह्यो ए ॥२॥ ज्ञान वडू संसार, ज्ञान मुगति दातार ॥ ज्ञान दोवो कह्यो ए, साचो सर्दह्यो ए ॥३॥ नयन लोचन सुविलास, लोकालोक प्रकाश ॥ ज्ञान विना पशु ए, नर जाणे किश्यु ए ॥४॥ अधिक आराधक जाण, भगवती सूत्र प्रमाण ॥ ज्ञानी सर्वतु ए, किरिया देशतु ए॥ ज्ञानी श्वासोछुवास, करम करे जे नास ॥ नारकीने सही ए,
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