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अभय रत्नसार। .. २६५ पण लखिय न शके अछे एवड़ा॥ १२॥ आपणे रंग भरि वात मुख जेटली, उपजे सामि न कहाय मुख तेटली ॥ सुणो सीमंधरा राजराजेसरा लाड़ने कोड़ प्रभु पूर सवि माहरा ॥१३॥ पुत्व भवि मोह वश नेह हुवे जेहने, समरिये एणि संसार नित तेहने। मेहने मोर जिम कमल भमरो रमे, तेम अरिहंत तूचित्त मोरे गमे ॥ १४॥ खलं अरिहंतनु ध्यान हियड़े वस्यु, बापडु पाप हिव रहिय करशे किस्यु। ठाम जिम गरुडवर पंखि आवे वही, ततखिण सर्पनी जाति न शके रही ॥ १५ ॥ पापमें कज्ज सावज्ज सह परिहरी सामि सीमंधरा तुम्ह पय अणुसरी ॥ शुद्ध चारित्र कहिये प्रभु पालशु, दुःख भंडार संसारमय टालशु॥ १६ ॥ तुम्ह हुँ दास हुँतुम्ह सेवक सही, एह में वात अरिहंत आगल कही ॥ एवड़ी मारी भगति जाणी करी, आपजो बापजी सार केवल सही ॥ १७ ॥ कलस ॥ एम ऋद्धि-बृद्धि,
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