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स्तवन-संग्रह।
धरम सनेह, करुणाकर प्रभु करजो मोपरि महिर अछेह ॥ दूसम काल तणो दुःख टालो दीन दयाल, पालो बिरुद संभालो निज सेवकशुकृ. पाल॥ ८॥ आशविलुद्धा अलग थकी पण करे
अरदास, पण महोटानी महिर छतां नवि थाय निराश ॥ केई वसे प्रभु पासे केई वसेछे दूर, राज महिरनी रीतें सकलने जाणे हजुर ॥६॥ शिव सुखदायक नायक लायक स्वामि सुरंग, ध्यायक ध्येय स्वरूप लहे निज आत्म उमंग ॥ सहिजे एक पलक जो थाये प्रभु तुझ संग, लाभ उदय जिन चंद्र लहे नित प्रेम अभंग ॥ १०॥
॥ पंचतीर्थीका दूसरा स्तवन । सफल संसार अवतार ए हु गुणुं, सामि सीमंधरा तुह्म भगते भए॒ ॥ भेटवा पायकमल भाव हियडे घणो, करिय सुपसाय जे. वीनवू ते सुणो ॥१॥ तुह्मशु कूड अरिहंत शु राखियें, जिस्यो अछे तिस्यो कर जोडि करि भांखियें ॥
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