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अभय रत्नसार ।
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नाभिराया कुलमंडी, जिनवर करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ सीद्धाचल जीका चैत्यवंदन ॥
परमेसर परमातमा, पावन परसि ॥ जय जगगुरु देवाधिदेव, नय में दिट्ठ ॥ १ ॥ अचल अकल अविकारसार, करुणारस सिंधु ॥ जगती जन आधार एक, निःकारण बंधु ॥ २॥ गुण अनंत प्रभु ताहरा, किमही कह्या न जाय ॥ राम प्रभु जिनध्यानथी, चिदानंद सुख थाय | ६ |
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