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चैत्यवन्दन-संग्रह। कोडि पण मुनि मनहरं ॥ श्री विमल गिरिवर शृङ्ग सिद्धा ॥ नमो०॥४॥निज साध्य साधन सुर मुनिवर, कोडिनंत ए गिरिवरं ॥ मुक्ति रमणी वर्या रंगे ॥ नमो० ॥५॥ पातालनरसुरलोक मांही, विमलगिरिपरतो परं ॥ नहि अधिक तीरथ तीर्थपति कहे ॥ नमो० ॥ ६॥ इम विमल गिरिवरशिखर मंडण, दुःख विहंडण ध्याईये ॥ निजशुद्ध सत्ता साधनार्थं, परम ज्योति निपाइये ॥७॥ जित मोह कोह विछोह निद्रा, परमपदस्थित जयकरं ॥ गिरिराज सेवाकरण तत्पर, पद्मविजय सुहितकरं ॥८॥
॥सिद्धाचलजी का दूसरा चैत्यवंदन ॥
श्रीशत्रुजय सिद्धक्षेत्र दीठे दुर्गति वारे॥ भाव धरीने जे चढे, तेने भवपार उतारे ॥१॥ अनंत सिद्धनो एह ठाम, सकल तीरथनो राय ॥ पूर्व नवाण रिखवदेव, ज्यां ठविआ प्रभुपाय ॥२ सूरजकुंड सोहामणो, कवडजक्ष अभिराम ॥
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