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अभय रत्तसार।
२५७ सीमंधरजिन-द्वितीय चैत्यवंदन ॥ श्रीसीमंधर जगधणी, आ भरते आवो ॥ करुणावंत करुणा करी, अमने वंदावो ॥१॥ सकल भक्त तुमे धणीए, जो होवे अम नाथ ॥ भवोभव हु छुताहरो, नहीं मेलुहवे साथ २ सयल संग छंडी करीए, चारित्र लेइश॥ पाय तमारा सेवीने, शिवरमणी वरिशु॥३॥ एअलजो मुजने घणो ए, पूरो सीमंधर देव ॥ इहां थकी हुवीनवं, अवधारो मुझ सेव ॥ ४॥
श्रीसिद्धाचलजी का चैत्यवंदन ॥ विमलकेवलज्ञानकमला, कलित त्रिभुवन हितकरं ॥ सुरराजसंस्तुतचरणपंकज, नमो आदि जिनेश्वरं ॥ १॥ विमलगिरिवरशृङ्गमंडण, प्रवरगुणगणभूधरं ॥ सुरअसुर किन्नर कोडि सेवित ॥ नमो० ॥ २॥ करती नाटक किन्नरी गण, गाय जिन गुण मनहरं ॥ निर्जरावली नमे अहनिश ॥ नमो० ॥ ३॥ पुंडरीक गणपति सिद्धि साधी,
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