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चैत्यवन्दन-संग्रह। पुक्खलवइ विजये जयो, सर्व जीवना त्राता ॥१॥ पूर्व विदेह पंडरी गिणी, नयरी ए सोहे ॥ श्रीश्रे यांस राजा तिहां, भविअणना मन मोहे ॥२॥ चउद सुपन निर्मल लही, सत्यकी राणी मात ॥ कुथु-अरजिन अंतरे, श्रीसीमंधर जात ॥३॥ अनुक्रमे प्रभु जनमीया, बली यौवन पावे ॥ मात-पिता हरखे करी, रुकमिणी परणावे ॥४॥ भोगवी सुख संसारनां, संजम मन लावे ॥ मुनिसुव्रत नमि अंतरे, दीक्षा प्रभु पावे ॥ ५ ॥घाती कर्मनो क्षय करी, पाम्या केवलनाण ॥ ऋषभ लंछने शोभता, सर्व भावना जाण ॥६॥ चोरासीजस गणधरा, मुनिवर एकसो कोड॥त्रण भुवनमां जोअतां, नहिं कोइ एहनी जोड़ ॥७॥ दश लाख कह्या केवली, प्रभुजीनो परिवार ॥ एकसमय त्रण कालना, जाणे सर्व विचार ॥८॥ उदय पेढाल जिनांतरेए, थाशे जिनवर सिद्ध ॥ जसविजय गुरु प्रणमतां, शुभ वंछित फल लीध ॥६॥
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