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अभय रत्तसार।
जाण ॥ आराहओ जदि एग मण, पावो पद कल्याण ॥३॥
॥ नवपदजी का चैत्यवंदन ॥ श्रीअरिहंत उदार कांति अति सुन्दर रूप, सेवो सिद्ध अनंत संत आतम गुण भूप ॥ आचारज उवझाय साध समतारस धाम, जिन भाषित सिद्धांत शुद्ध अनुभव अभिराम ॥१॥ बोध-बीज गुण संपदा ए, नाण-चरण तव शुद्ध ॥ ध्यावो परमानंद पद, ए नवपद अविरुद्ध ॥२॥ इह परभव आणंद जगमांहि प्रसिद्धो, चिंतामणि सम जास जोग बहु पुन्ये लद्धो॥ तिहुअण सार अपार एह महिमा मन धारो, परहर पर जंजाल जाल नित एह संभारो ॥३॥ सिद्ध चक्र पद सेवतां ए, सहजानंद स्वरूप ॥ अमृतमय कल्याण-निधि प्रगटे चेतन भूप ॥ ४॥
॥ सीमंधरजिन-चैत्यवंदन ॥ सीमंधर परमातमा, शिवसुखना दाता ॥
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