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अभय रत्तसार ।
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यानाथकू, नमन करू चित चाय ॥ ऋद्धि-बुद्धि मोहे दीजिये, दिन-दिन अधिक सवाय ॥६॥ श्रीकेसरियानाथके, केसर हंदा कीच ॥ मरुदेवाके लाडले, वसे पहांडां बीच ॥ १० ॥ इस रागको नाम कल्याण हे प्रभुजीको नाम कल्या रण ॥ सकल सभा कल्याण है, जब प्रगटी राग कल्याण ॥११॥ सोरठ राग सुहामणो, मुखां न मेली जाय ॥ ज्यूं-ज्यूं रात गलंतडी, त्यूं-त्यूं मीठी थाय ॥ १२ धंदो कर धन जोडियो, लाखां उपर कोड़ || मरती वेला मानवी, लियो कंदोरो तोड़ ॥ १३ ॥
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दया गुणांरी वेलड़ी, दया गुणांरी खांण ॥ अनंत जीव मुगते गया, दयात परिमाण ॥१॥ दया मुगति-तरु वेलडी, रोपी आद जिनंद ॥ श्रावक कुल मंडन भई, सींची सर्व जिनंद ॥२
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