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अभय रत्तसार।
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जन्म जरा मरणादि रूप, भव-ताप निवारण ॥ श्री सिद्धारथ तात-मात, त्रिशला तनुजात ॥ सोवन वरण शरीर वीर, त्रिभुवन विख्यात ॥ अमतरूपें राजतो ए, चोवीशमो जिनराय ॥ क्षमाप्रमुख कल्याणमुनि, आपोकरि सुपसाय॥७॥
॥ सरस्वती की स्तुति॥ अवामा वामादे सकलमुभयः कालघटना। द्विधा भूतं रूपं भगवदभिधेयं भवतिय ॥ तदंतमंत्रं मे स्मरहरमयं सेंदुममलं निराकारं शस्वजप नरपते सिव्यतु सते॥ १ ॥ अविरलशब्दघनोघा। प्रक्षालितसकलभूतलकलंकाः ॥ .मुनिभिरुषासिक्तचरक्षा । सरस्वती हरतु मे दुरितं ॥ २॥
॥ दर्शनं देवदेवस्य, दर्शनं पापनाशनं । दर्शनं स्वगसोपानं, दर्शनं मोक्षसाधनम् ॥ १॥ दर्शनेन जिनेंद्राणां, साधूनां वंदनेन च । न तिष्ठति चिरं पापं, छिद्रहस्ते यथोदकं ॥ २ ॥ अद्य प्रचालित गात्रं, नेत्रे च सफलो कृते। मुक्तोंहं सर्वपापे
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