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अभय रत्नसार। २४६ गीस ॥ २॥ सुणिये इणपर सूत्रमें। जिनवर गणधर वांण ॥ भविजन भेटो भगतसुं। तीरथ करण कल्याण ॥३॥
॥जिनस्तुति ॥ दर्शनाद रितध्वंसी, वंदनादिच्छितप्रदः ॥ पूजनात्पूरकः श्रीणां, जिनःसाक्षात्सुरद्रुमः॥
.. ॥श्रीआदिनाथजी की स्तुति ॥
सुवर्णवणं गजराजगामिनं, प्रलंबबाहुं सुविशाल लोचनम् ॥ नरामरेंद्रः स्तुतपादपंकजं, नमामि भक्त्या ऋषभं जिनोत्तमम् ॥३॥
॥शांतिनाथजी की स्तुति ॥ सालम जिनवर शांतिनाथ, सेवो शिरत नामी ॥ कंचन वरण शरीर कांति, अतिशय अभिरामी ॥ अचिरा अंगज विश्वसेन, नरपति कुलचंद॥ मृगलंछन धर पद कमल, सेवे सुर-तर वृन्द ॥ जुगमां अमृत जे हवी ए, जास अखंडित आण ॥ एक मनें आराधतां, लहिये कोडि कल्याण ॥४॥
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