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२४८ स्तुति-संग्रह। कहि न सके एकंत । समलं सुखसायर मनशुद्ध सूत्र-सिद्धांत ॥३॥ सिद्धायिका देवी वारे विघन विशेष । सहु संकट चूरे पूरे आश अशेष ॥ अह निश कर जोड़ी सेवे सुर नर इंद। जपे गुणगण इम श्रीजिनलाभ सूरिदं ॥४॥
॥श्रीसीमंधरजी की स्तुति ॥ ___ वंदू जिनवर विहरमाण, सीमंधर सामी ॥ केवल कमला कांत दांत, करुणारस धामी ॥ १॥ कांचनगिरि सम देह, कांति वृष लांछन पाय ॥ चौरासी लख. पूर्व आय, सेवे सुरराय ॥२॥ पूर्व विदेह विराजता ए, पुंडरीकनी भांण ॥ प्रभु यो दरसन संपदा, कारण पद कल्याण ॥ ३॥
॥समेतशिखरजीकी स्तुति ॥ पूरव दीसे दीपतो। गिरवो गिरवर नित्त । तीरथ सिखर समेतको ॥ चाहूंदरसण चित्त ॥१॥ प्रथम चरम बारम प्रभ । बावीसम विण वीस ॥ अण्णसण कर इण गिरवरे । शिव पुहता सु ज
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