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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अभय रत्नसार। २४७ शिरताज वखाण्या अनुयोगद्वार मझार ॥ अमृत रस पीवो जिन आगम सुखकन्द । जो नित प्रति ध्यावे पावे परमानन्द ॥३॥ जिन आरणा मीठी प्रेम घरी चित लाय। निजगुरु प्रसादे दुःख दुर्गति मिट जाय ॥ आनन्द मनरंगे भवसागर तिरजाय । श्रुतदेवी सानिध निज करणी हुलसाय ॥४॥ ॥वर्धमानजिन स्तुति ॥ मूरति मन मोहन कंचन कोमल काय । खिद्धारथ नन्दन त्रिशलादेवी सुमाय॥ मृगनायक लंछन सातहाथ तनुमान । दिनदिन सुख दायक स्वामी श्रीवर्द्धमान ॥ १ ॥ सुर नरवर किन्नर वंदित पद अरविंद । कामित भर पूरण अभिनव सुरतरु कंद॥ भवियणने तारे प्रवहण सम निशि दीस। चौवीशे जिनवर प्रणमं विसवा वीस ॥२॥ अरथे करिआगम भाख्या श्रीभगवंत । गणधरते गूंथ्या गुणनिधि ज्ञान अनंत ॥ सुरगुरु पण महिमा For Private And Personal Use Only
SR No.020001
Book TitleAbhayratnasara
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKashinath Jain
PublisherDanmal Shankardas Nahta
Publication Year1898
Total Pages788
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari
File Size8 MB
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