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स्तुति-संग्रह। इग्यारे कीजे व्रत उपवास । वलि गुणनो गुणिये विधिसेती सुविलास ॥ जिन आगम वाणी जाणी जगत प्रधान । एक चित्त आराधो साधो सिद्ध विधान ॥३॥ सुर असुर भुवणवण सम्यगदरसन वंत ॥ जिनचंद्र सुसेवक वैयांवच्च करंत ॥ श्री संघ सकलमें आराधक बहुजाण । जिन शासन देवी देव करो कल्याण ॥४॥ . ॥श्री महावीर स्वामीकी स्तुति ॥ महावीर जिनेश्वर प्रणमुवारंवार । सर्वज्ञ निरंजन करुणारस भंडार ॥ जगनाथ दिवाकर सुखकर हितकर जान । जो भविजन सेवे पावे केवलज्ञान ॥ १॥ तीर्थंकर शंकर सकल विश्व आधार । अगणित गुण वरिया आतम ज्ञान उदार ॥ शिवपद जग उत्तम आनन्द अनुभव सार। पदपंकज सेवा सुख सम्पत्ति दातार ॥२॥ श्रुतज्ञान. जगतमें करता बहु उपकार ।
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