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अभय रत्नसार ।
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सुसेवक वैयावच्च करंत ॥ श्रीसंघ सकलमें आराधक बहु जाण । जिनशासन देवी देव करो
कल्याण ॥ ४ ॥
॥ श्रीरोहिणीतप की स्तुति ॥ जयकारी जिनवर वासुपूज्य अरिहंत । रोहिणी तपनो फल भाख्यो श्रीभगवंत । नर-नारी भावे आराधो तप एह । सुख संपत लीला लक्ष्मी पामे तेह ॥ १ ॥ ऋषभादिक जिनवर रोहिणी तप सुविचार | जिनमुख परकासे बेठी परखदा बार । रोहिणी दिन कीजे रोहिणीनो उपवास । मन वंछित लीला सुन्दर भोग-विलास ॥ २ ॥ आगम में एहनो बोल्यो लाभ अनंत । विधसु परमारथ साधे सुधो संत । दुख-दोहग तेहनो नासि जाय सब दूर | बलि दिन - दिन अंगे वाधे अधिक नूर || ३ || महिमा जग मोटो रोहिणी तप - फल जाण । सौभाग्य सदा जे पामे चतुर सुजाण । नित घर-घर महोच्छव नित नवला
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