________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३८
स्तुति-संग्रह। ॥ श्रीसीमधरजिन की स्तुति ॥ ॥ मन सुद्ध वंदो भावे भवियण श्रीसीमंधर रायाजी। पांचसे धनुष प्रमाण विराजित कंचनवरणी कायाजी। श्रेयांस नरपति सत्यकि नंदन वृषभलंछन सुखदायाजी। विजय भली पुखलावइ विचरे सेवे सुरनर पायाजी ॥ १॥ काल अतीत जे जिनवर हुआ होस्य वलिय अनंताजी। संप्रति काले पंच विदेहे वरते वीस विख्याताजी॥ अतिशयवंत अनंत जिनेसर जगबंधव जगत्राताजी। ध्यायक ध्येय स्वरूप जे ध्यावे पावे शिवसुख साताजी ॥२॥ मोह मिथ्यात तिमिर भव नासन अभिनव सूर समाणीजी । भवोदधि तरणी मोच निसरणी नय निक्षेप पहाणीजी। ए जिनवाणी अमिय समाणी आराधो भविप्राणीजी ॥ ३॥ शासनदेवी सुरनर सेवी श्रीपंचा गुली माईजी । विघन विडारण संपत्तिकारण सेवकजन सुखदाईजी ॥ त्रिभुवनमोहनी अंतर
For Private And Personal Use Only