________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
२३७
अभय रत्नसार। अवतरियाजी। विश्वसेन नप नंदन जगगुरु हथ णापुर सुख करियाजी ॥ ईतउपद्रव मारि विकारी शांति करी संचरियाजी। जे भवि मंगल कारण ध्यावे ते हुय गुण-गण दरियाजी ॥ १॥ वर्तमान जिन सब सुखकारण अतीत अनागत वंदोजी। बारे चक्री नव नारायण नव प्रतिचक्री आनंदोजी॥ रामादिक जे पुरष सलाका वंदत पाप निकदोजी । द्रव्य निक्षेपे जिनसम जाणो काटे भव भय छंदोजी ॥ २॥ अंग उपांगे जिनवर प्रतिमा श्रीजिन सरखी भाखीजी। द्रव्य भाव बिहुं भेदे पूजा महानिशीथे साखीजी ॥ विषय निवृत्ती सत् आरंभे विनय तपी ते जाणोजी । शुभयोगे नहि आरंभकारी भगवइ अंग प्रमाणोजी ॥३॥ थापना सत्ये देवी निर्वाणी श्रीसंघने सुखकारीजी। कारणथी सब कारज सोद्धे जिनवर आज्ञा धारीजी। श्रीजिनकीत्ति सूरीश्वर गच्छपति पाठक श्रीऋद्धिसारीजो। समकितधारी देव सहाई सुखसंपत्त दातारीजी ॥४॥
For Private And Personal Use Only