________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
२३६
स्तुति संग्रह |
॥ शत्रुजय की स्तुति ॥ विमलाचल मंडन जिनवर आदिजिणंद | निरमम निरमोही केवलज्ञान दिद । जे पूर्व निवाणू वा घरी आनंद । सेजागिरिसिखरे समवसस्था सुखकंद ॥ १ ॥ इण चउवीसीमां ऋषभादिक जिनराय । वलि काल अतीते अनंत चोवीसी थाय ॥ ते सवि इस गिरवर आावी फरसी जाय । इम भावी काले आवस्य सवि मुनिराय ॥ २ ॥ श्रीऋऋषभना गणधर पुंडरीक गुणवंत । द्वादस अंग रचना कीधी जेण महंत ॥ सब आगम मांहे से महिम महंत । भाखी जिन गणधर से वो करि थिर चित्त ॥ ३ ॥ चक्केसरि गोमुह कवड पमुह सुर सार । जसु सेवा कारण थापे इन्द्र उदार ॥ देवचंद्रगणि भाखे भविजनने आधार | सब तीरथमांहे सिद्धाचल सिरदार ॥४॥ ॥ श्रीशांतिनाथजी की स्तुति ॥ शांति जिनेसर जग अलवेसर अचिरा उदर
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
3
For Private And Personal Use Only