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अभय रत्नसार
२३१
मन उपवासे विधिसुं चैत्य बंदनीक । करिये जिन आगल टाली वचन अलीक ॥१॥ शक्रस्तवनादिक प्रथम तिलक दस वीस । अक्षत गिरणतीसे चढता तिम चालीस ॥ पंचासनी पूजा भाषइ इम जगदीस । तेहिज नित प्रणमुळे स्वामी जिन चोवीस ||२|| सुदि पक्षनी पूनम चैत्र मास शुभ वार | विधिसेती लहिये आगम साख विचार ॥ इम सोले वरसलग धरिये ज्ञान उदार । करतां नर नारी पामे भवनो पार ॥ ३ ॥ सोवन तन चरणे नयने तिम अरविंद । चक्केसरीदेवी सेविय नर सुरद ॥ कामित सुखदायक पूरय मन आणंद | जंपे गणनायक श्रीजिनलाभसूरिंद ॥ ४ ॥
|| नवपदजी की स्तुति ॥
॥ समहं सुखदायक मन सुध वीर जिनंद । जिण नवपद महिमा भाषी ज्ञान दिखंद | आसु मधु उज्जल सातमथी नवदीस । नव आंबिल
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