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२३२ स्तुति-संग्रह करिये मन धरि अधिक जगीस ॥ १ ॥ अरिहंत वलि सिद्ध आचारज उवझाय। मुनि दरसण तिम वलि नाण चरण तब थाय ॥ प्रतिपदनो गुणनो गुणिये दोय हजार। सहु जिननी पुजा कीजे अष्ट प्रकार ॥२॥ बारस अडबत्तीस पण वीस सग वीस सार । सडसठ इकावन सीतर पच्चास प्रकार ॥ इण संख्या काउसग परदक्षा परिणाम। आगम भाषित विधि इम कीजे अभिराम ॥३॥ चक्केसरिदेवी तिम विमलेसर जक्ष । श्रीपालतणीपर पूरे वंछित सक्ख ॥ इण विधि आराधो सिद्धचक्र भविप्राणी। जिनहर्ष बढ़े नित श्रीजिनचंदनी वाणी ॥४॥ इति ॥
॥वीस स्थानककी स्तुति ॥ ॥शिवसुख दाता जगत विख्याता पूरण अभिनव कामीजी । ज्ञानादिक गुण चेतनरूपी चिदानंदघन धामिजी ॥ थानक वीसे आगम भणिया वीतराग गुण भुक्ताजी। जे नर अंतर
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