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अभय - रत्नसार ।
राखी ॥ ३ ॥ श्रुतदेवी इक मन आराधो मन वांछित फल होय, जे जे आज्ञासूधी पाले ज्यानां विघन हरेय । सेवक इणपर करे बीनती सूधो समकित पाय, खरतर गच्छ मंडण कुमति विहंडण माणिक्यसूरि गुरुराय ॥ ४ ॥
॥ पार्श्वनाथजीकी स्तुति ॥
हरिगीत च्छंद ।
॥ द्रे कि धपमप धुधुमि धोंधों सकिधर धप धोरवं, दोंदों किं दों दों दाडिदि दाडिदिकि द्रमकिद्रण रण, द्रौणवं । झझि
किरण रणरण, निजकि निजजन, रञ्जनम्, सुरशैल शिखरे भवतु सुखदं पार्श्वजिनपतिमज्जनम् ॥ १ ॥ कटरोंगिनि थोंगिनि किटति गिगडदां धुधुकि घुटनट पाटवम्, गुणगुणण गुणगण रणकि गण गुणगण, गौरवम् । झझि कि
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