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वृद्धनवकार ।
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नेरेहिं ॥ वायव दिसि झाएह मंगलागं च सव्वेसिं, पढमं हवइ मंगलं ईसाग पएसिं ॥ चिह्न दिसि चिह्न विदिसे मिलिय अट दल कमल ठवेइ, जो गुरु लघु जाणी जपै सो घण पाव खवेइ ॥ ८ ॥ इण प्रभाव धरणिंद हुआ पायालह सामी, समलीकुप्रर उपन्न भिल्ल सुर लोयह गामी ॥ संबल कंबल वे बलद पहुता देवा कप्पे, सूली दीधो चोर देव थयो नवकारहि जप्पे | शिवकुमार मन वंधिय करे जोगी लियो मसाण, सोनापुरसो सोधलो इस नवकार प्रमाण ॥ ६ ॥ छींके बैठो चोर एक आकासे गामी, अहि फिट्टि हुई फूल माल नवकारह नामी || वारू श्राचारंत बाल जल नदी प्रवाहे, बोध्यों कंटही उयर मंत्र जपियो मनमांहे ॥ चिंत्या काज सबै सरे इरत परत विमास, पालित सूरितणी परे विद्या सिद्ध आकास ॥१०॥ चौर धाड संकट टले राजा वसि होवे, तित्थंकर
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