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१४६ अभय रत्नसार। समियो ए वीर जिणन्द, पनमचन्द जिम उल्लसिय, विहरियो ए भरहवासम्मि, वरस बहुत्तर संवसिय। ठवतो ए कणय पउमेण, पाय कमल संधैं सहिय, आवियो ए नयणानंद, नयर पावापुर सुरमहिय ॥ ३२ ॥ पेसियो ए गोयम सामि, देवसमा प्रतिबोध करे; आपणो ए तिसला देवि, नंदन पुहतो परमपए। वलतो ए देव आकाश, पेखवि जाण्यो जिण समो ए, तो मुनि ए मन विखवाद, नाद भेद जिम ऊपनो ए॥ ३३ ॥ इण समे ए सामिय देखि, आप कनासु टालियो ए, जाणतो ए तिहुअण नाह, लोक विवहार न पालियो ए। अतिभलों ए कीधलो सामि, जाण्यो केवल मागसे ए, चिन्तव्यो ए बालक जेम, अहवा केडे लागसे ए॥ ३४ ॥ हूँ किम ए वीर जिणंद, भगतिहि भोलेभोलव्यो ए, आपणो ए उचलो नेह, नाह न संपे साचव्यो ए। साचो ए वीतराग, नेह न
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