________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
श्री गौतम स्वामिजी का रास ।
१४५
जृंभक देव तिहां प्रतिबोध्यो पुडरीक, कंडरिक अध्ययन भरणी । वलता गोयम सामि, सवि तापस प्रतिबोध करे, लेई आपण साथ, चाले जिम जूथाधिपति ॥ २८ ॥ खीर खांड घृत आण, अमिय वठ अंगूठ ठवे, गोयम एकण पात्र, करावे पारणो सवे | पंच सयां शुभ भाव, उज्जल भरियो खीर मिसे, साचा गुरु संयोग, कबल ते केवल रूप हुआ ॥ २६ ॥ पञ्च सयाँ जिगनाह, समवसरण प्रकारत्रय, पेखवि केवल नाण, उप्पन्नो उज्जोय करे । जाणे जणवि पीयूष, गाजंती घन मेघ जिम, जिनवाणी निसुणेवि, नाणी हुआ पंचसया ॥ ३० ॥ वस्तु ॥ इण अनुक्रम इस अनुक्रम नाग पन्नरेसे, उप्पन्न परिवरिय, हरिदुरिय जिगनाह वंदइ, जाणेवि जगगुरु वयण, तिहि नारा अप्पाण निंदइ । चरम जिनेसर इम भरणे, गोयम म करिस खेव, छह जाय आपण सही, होस्यां तुल्ला बेव ॥ ३१ ॥
भास ॥
१६
For Private And Personal Use Only