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१४४ अभय रत्नसार। हत, गोयम दीजें दान इम। गुरु ऊपर गुरु भक्ति, सामी गोयम ऊपनिय; एणिछल केवल नाण,, रागज राखे रंग भरे ॥ २४ ॥ जो अष्टापद सेल, वंदे चढ चउवीस जिण, आतम लब्धि क्सेण, चरम सरीरी सो ज मुनि । इय देसणा निसुणेह, गोयम गणहर संचरिय, तापस पन्नर सएण, तो मुनि दोठो आवतो ए ॥ २५ ॥ तप सोसिय निय अंग-अम्हां संगति न उपजे ए, किम चढसे दृढ़ काय, गज जिम दीसे गाजतो ए। गिरुओ ए अभिमान, तापस जो मन चिंतवे ए, तो मुनि चढियो वेग, अलंबवि दिनकर किरण ॥ २६ ॥ कंचण मणि निप्फन्न, दंडकलस धजवड सहिय, पेखवि परमाणन्द, जिणहर भरतेसर महिय। निय निय काय प्रमाण, चिहु दिसि संठिय जिणह बिंब, पणमवि मन उल्लास, गोयम गणहर तिहां वसिय ॥ २७ ॥ वयर-सामोनो जीव, तिर्यक
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