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श्री गौतम खामिजी का रास। १४३ णिवि करे, अगनिभूइ आवेय तो; नाम लेई आभास करे, ते पण प्रतिबोधेय तो ॥२०॥ इण अनुक्रम गणहर रयण, थाप्या वीर इग्यार तो, तो उपदेशे भुवन गुरु, संयमशुं व्रत बार तो। बिहु उपवासें पारणो ए, आपणपे विहरंत तो; गोयन संयम जग सयल, जय जयकारं करंत तो॥ २१॥ वस्तु ॥ इंद्रभूइ इंद्रभूइ चढियो बहुमान, हुंकारो करि कंपतो, समवसरण पहुतो तुरतो; जे संसा सामि सवे, चरमनाह फेडे फरंत तो; बोधिबीज संजाय मने, गोयम भवहि विरत्त, दिक्खा लेई सिक्खा सही, गणहर पय संपत्त ॥ २२ ॥ भास ॥ आज हुओ सुविहाण, आज पचेलिमों पुण्य भरो, दीठा गोयम सामि, जो निय नयणे अमिय सरो। समवसरण मझार, जे जे संसय ऊपजेए, ते ते पर उपगार कारण पूछे मुनि पवरो॥ २३ ॥ जीहां २ दीजें दीख, तीहां केवल ऊपजे ए; आप कने अण
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