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श्री गौतम स्वामिजी का रास ।
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भरह खित्त, खोणी तल मंडण; मगह देस सेणिय नरेश, रिऊ दल बल खंडण | धरणवर गुव्वर गाम नाम, जिहां गुण गण सज्जा; विप्प बसे वसुभूइ तत्थ, तसु पुहवी भज्जा ॥ २ ॥ ताण पुत सिरि इन्दभूइ, भूवलय पसिद्धो; चाउदह विज्जा विविहरूव, नारी रस लुद्धो । विनय विवेक विचार सार, गुण गणह मनोहरः सात हाथ सुप्रमाण देह, रूवहि रंभावर ॥ ३ ॥ नयण वयण कर चरण जरणवि, पंकज जल पाडिय; तेजहिं तारा चन्द सूरि, आकास भमाडिय । रुवहि मयण अनंग करवि, मेल्यो निरधाडिय, धीरम मेरु गंभीर सिंधु, चंगम चय चाडिय || ४ || पेक्खवि निरुवम रूव जास, जाण जंपे किंचियः एकाकी किल भोत इत्थ, गुण मेल्या सिंजिय । हवा निच्चय पुव्व जम्म, जिरणवर इण अंचिय; रंभा पउमा गउरी गङ्ग, तिहां विधि वंचिय ॥ ५॥ नय बुध नय गुरु कविण
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