________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
अभय रत्नसार।
कोय, जसु आगल रहियो; पंच सयां गुण पात्र छात्र, हीडे परवरियो। करय निरंतर यज्ञ करम, मिथ्यामति मोहिय; अणचल होसे चरम नाण, दंसह विसोहिय ॥६॥ वस्तु ॥ जंबूदोव जंबूदीव भरह वासंमि, खोणीतल मंडण, मगह देस सेणिय नरेसर, वर गुव्वर गाम तिहां, विप्प वसे वसुभूइ सुन्दर, तसुपुहवि भजा, सयल गुण गण रूव निहाण, ताण पुत्त विजानिलो, गोयम अतिहि सुजान ॥७॥ भास ॥ चरम जिणेसर केवलनाणी, चोविह संघ पइट्टा जाणी। पावापुर सामी संपत्तो, चउविह देव निकायहिं जुत्तो।। देवहि समवसरण तिहां कीजें, जिण दीटे मिथ्यामत छीजे। त्रिभुवन गुरु सिंहासन बेठा, ततखिण मोह दिगंत पइट्ठा ॥ ६॥ क्रोध मान माया मद पूरा, जाये नाठा जिम दिन चोरा। देव दुंदुभि आगासे वाजी, धरम नरेसर आव्यो गाजी ॥ १० ॥ कुसुम वृष्टि अरचे तिहां देवा,
For Private And Personal Use Only