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श्रीगौडीपार्श्वजिन-वृद्धस्तवनं। १३७ नो दातार, भय भंजण रंजण अवतार। बंधन तूटे वेणी तणा, श्री पार्श्व नाम अक्षर स्मरणा ॥ १७ ॥ (दूहा ) श्री पाश्वनाम अक्षर जपे, विश्वानर विकराल । हस्त जूथ दूरे टलै, दुद्धर सिह सियाल ॥ ४८ ॥ चोर तणा भय चूकवे, विष अमृत उडकार । विष धरनो विष ऊतरे, संग्रामें जय जय कार ॥ ४६॥ रोग सोग दा. लिद्र दुख, दोहग दूर पलाय । परमेसर श्री पासनो, महिमा मन्त्र जपाय ॥ ५० ॥ (कडखानी चाल ) उंजितु २ उंज उपसम धरी, ॐ ह्रीँ श्रीँ श्री पार्श्व अक्षर जपते। भूत ने प्रेत झोटिंग व्यन्तर सुरा, उपसमे वार इकबीस गुणंते (उं)॥५१॥ दुद्धरा रोग सोगा जरा जंतने, ताव एकान्तरा दुत्तपते । गर्भबन्धन वणं सर्प विच्छू विषं, चालिका बालमेवा झखंत ( उं० ) ॥ ५२ ॥ साइणी डाइणी रोहिणी रंकणो, फोटका मोटका दोष हुते । दाढ उंदर- .
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