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अभय रत्नसार।
॥ ३६॥ गरुओ गौडी पास जिन, आपे अरथ भंडार । सांनिध करै श्री सङ्घने, आसा पूरणहार ॥४०॥ नील पलाणे नील हय, नीलो थई असवार । मारग चूका मानवी, वाट दिखावण हार ॥४१॥ ( ढाल ) वरण अढार तणो लहै भोग, विघन निवारे टाले रोग। पवित्र थई समरै जे जाप, टाल सगला पाप संताप ॥४२॥ निरधननो घरि धन नो सुत, आप अपुत्रीयाने पुत्र । कायरने सूरापण धरै, पार उतारै लच्छी धरै ॥ ४३ ॥ दोभागीने दे सोभाग; पग विहूणाने आपै पग। ठाम नहीं तेहने ये ठाम, मनवंछित पूरे अभिराम ॥ ४४ ॥ निराधार ने ये आधार, भवसायर उतारे पार । आरतियानी भारत भंग, धरै ध्यान ते लहै सुरंग ॥ ४५ ॥ समस्यां सहाय दीये यक्ष राज, तेहना मोटा अछे दिवाज । बुद्धि हीण ने बुद्धि प्रकाश, गाने वचन विलास ॥ ४६॥ दुखियाने सुख
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