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श्रीगौडोपाश्चेजिन वृद्धस्तवनं ।
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घोली, विधसुं पूजा रंगे जी ( ए० ) ॥ १६ ॥ गादी रूडी रुनी कीधी, ते मांहि प्रतिमा राखे जी । अनुक्रम आव्या परिकर माहें, श्रीसंघने सुर साख जी ( ए० ) ॥ २० ॥ उच्छव दिन २ अधिक थाये, सत्तर भेद सनात्रो जो । ठाम २ ना दरसण करवा, आवै लोक प्रभातो जी ( ए० ) ॥ २१ ॥ ( दूहा ) ॥ इक दिन देखे - धसुं, परिकर पुरनो भङ्ग । जतन करूँ प्रतिमा तणो, तीरथ अलै अभग ॥ २२ ॥ सुणो आप सेठने, थल अटवी उज्जाड । महिमा थास्यै अति घणी, प्रतिमा तिहां पहुंचाड ॥ २३ ॥ कुशल खेम तिहां, तुमनें मुझने जाणि । संका छोड़ो काम करि, करतो मकरि संकाणि ॥ २४॥ ( डाल ) ॥ पास मनोरथ पूरा करें, वाहण एक वृषभ जोतरै । परिकरथी परियाणों करें, एक थल चढ़ि बीजो उतरे ॥ २५॥ बारै कोस आव्या जेतले, प्रतिमा नवि चाले तेतलें । गोठी मनह
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