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१३४ अभय रत्नसार । विमासण थई, पास भुवन मंडावं सही ॥२६॥ आ अटवी किम करूँ प्रयाण, कटको कोइ न दीसै पाहाण । देवल पास जिनेसर तणो, मंडावं किम गर/ विणो ॥ २७ ॥ जल विन श्री. संघ रहस्यै किहां, सिलावटो किम आवे इहां । चिन्तातुर थयो निद्रा लहै, यक्षराज आवीने कहैं ॥ २८ ॥ गुंहली ऊपर नाणो जिहां, गरथ घणो जाणीजे तिहां । स्वस्तिक सोपारीने ठाणि, पाहण तणी उल्लटस्य खाणि ॥ २६ ॥ श्रीफल सजल तिहां किल जूओ, अमृत जलनी सरसी कूओ। खारा कुवा तणो इह सैनाण, भूमि पड्यो ॐ नीलो छाण ॥ ३०॥ सिलावटो सीरोही वसै कोड पराभवियो किसमिसे। तिहां थको तुं इहां आणजे, सत्य वचन माहरो मानगे॥३१॥ गोठीनो मन थिर थापियो, सिलावटने सुहणो दियो। रोग गमीने पूरू आस, पास तणो मंडे आवास ॥ ३२ ॥ सुपन मांहे.
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