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अभय - रत्नसार ।
गुण
सारथवाहने सुहौं जी | पास तणी प्रतिमा तु लेजे, लेतो सिर मत धूणे जी ( एम० ) ॥ १३ ॥ पांच टक्का तेहने पे, अधिको म पिस वारू जी । जतन करी पहुंचाडे थानिक, प्रतिमा संभाजी ( एम० ) ॥१४॥ तुझने होसी बहु फल दायक भाई गोठीने सुणजे जी । पूजीस प्रणमीश तेहना पाया, प्रह उठीने थुणजे जी ( ए० ) ॥ १५ ॥ सुहणो देईने सुर चाल्यो, आपणे थांनक पहुतो जी । पाटण मांहें सारथवाहु, हीडै तुरकने जोतो जी (ए०) ॥ १६ ॥ तुरकै जातां दीठो गोठी, चोखा तिलक लिलाडे जी । संकेत पहुतो साचो जाणि, बौलावै बहु लाडै जी ( ए० ) ॥१७॥ मुझ घरि प्रतिमा तुनें पुं, पास जिणेसर केरी जी । पांचसै टक्का जो मुझ आप, मोल न मांगु फेरी जी ( ए० ) ॥ १८ ॥ नागो देई प्रतिमा लेई, थानक पहुं तो रंगै जी । केसर चन्दन मृगमद
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