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गुरुपारतन्त्र्यनामकं पञ्चमं स्मरणम् । ६8 भो । गुरु-गिरि-गरुओ सरहुव्व, सूरी जिणवल्लहो होत्था ॥ १८ ॥ जुग-पवरागम-पीउसपाण पीणिय-मणा कया भव्वा । जेण जिणवल्लहेणं, गुरुणा तं सव्वहा वंदे ॥ १६ ॥ विष्फुरिय-पवर-पवयण,-सिरोमणी बूढ-दुव्वह-खमो य। जो सेसाणं सेसुव्व, सहइ सत्ताण ताणकरो ॥ २०॥ सच्चरिआण-महीणं, सुगुरुणं पारतन्तमुबहइ । जयइ जिणदत्त-सूरी, सिरिनिलो पणय-मुणि-तिलओ ॥ २१ ॥ इति श्रीगुरुपारतन्त्र्यनामकं पञ्चमं स्मरणम् ।
॥ अथ षष्ठं स्मरणम् ॥ सिग्घमवहरउ विग्धं,जिण-वीराणाणुगामिसंघस्स । सिरि-पास-जिणो थंभण-पुर-डिओ निट्टिानिट्ठो ॥ १॥ गोयम-सुहम्म-पमुहा, गणवइणो विहिअ-भव्व-सत्त-सुहा । सिरि-वद्धमाण-जिण-तित्थ-सुत्थयं ते कुणन्तु सया ॥२॥
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