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अभय रत्नसार। जिणे,-सरेण हय-महिअ-दोसेणं ॥ ११ ॥ सुकइत्त-पत्त-कित्ती, पयडिअ-गुत्ती पसन्त-सुह-मुत्ती पहय-परबाइ-दित्ती, जिणचंद-जईसरो मंती ॥ १२॥ पयडिअ-नवंग-सुत्तत्थ, रयणुक्कोसो पणासिअ-पोसो। भव-भीय-भविष जणमण,-कय-संतोषो विगय-दोसो ॥ १३ ॥ जुगपवरागम-सार,-परूवणा-करण-वन्धुरो धणिअं। सिरि-अभयदेव-सूरी, मुणि-पवरो परमपसम-धरो॥१४॥ कय-सावय-संतोसो, हरिब सारंग-भग्ग-संदेहो। गय-समय-दप्प-दलणो, आसाइअ-पवर-कव्व-रसो॥ १५ ॥ भीम-भवकाणणम्मि अ, दंसिअ गुरु वयण-रयण-संदोहो। नीसेस-सत्त-गुरुओ, सूरी जिणवल्लहो जयइ ॥ १६॥ उपरिटिअ-सच्चरणो, चउरणप्रोग-प्पहाण-सच्चरणो । असम-मयराय महणो, उड्ढ-मुहो सहइ जस्स करो॥ १७॥ दंसिपनिम्मल-निच्चल, दन्त-गणोगणिअ-सावोत्थ
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