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गुरुपारतंत्र्यनामकं पञ्चमं स्मरणम् ६७ हणुव्व अग्गाहा ॥४॥ सुगुण-जण-जणियचुजा सज्जो निरवज्ज-गहिय-पवज्जा। सिवसुह-साहण-सज्जा, भव-गिरि-गुरु चूरणे वज्जा ॥ ५॥ अज्ज-सुहम्म-पमुहा, गुण-गण-निवहा सुरिंद-विहिअ-महा । ताण तिसंझनाम, नामं न पणासइ जियाणं ॥६॥ पडिवज्जिअ-जिणदेवो, देवायरिओ दुरंत-भवहारी। सिरिनेमिचन्द-सूरी उज्जोअण-सूरिणो सुगुरु ॥७॥ सिरि-वद्धमाण-सूरी, पयडीकय-सूरि-मंत-माहप्पो। पडिहय-कसाय-पसरो, सरय-ससंकुब्व सुह-जणओ ॥८॥ सुह-सील-चोर-चप्परणपच्चलो निच्चलो जिण-मयस्मि । जुगपवर-सुद्धसिद्धन्त जाण-ओ पणय- सुगुणजणो ॥६॥ पुरो दुल्लह-महिव,-लहस्स अणहिल्लवाडए पयडं । मुक्कावि आ रिऊणं, सीहेणव दव्बलिंगि गया ॥ १०॥ दसमच्छेरय-निसि-विप्फुरन्तसच्छन्द-मूरि-मय-तिमिरं। सूरेणव सूरि
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