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अभय रत्तसार।
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दिसन्तुसयल-संघस्स। इयर-सुरा वि हु सम्म जिण-गणहर-कहिय-कारिस्स ॥ २५ ॥ इय जो पढइ तिसंझ, दुस्सझ तस्स नस्थि किंपि जए । जिणदत्ताणाए ठिओ, सनिट्टिअट्टो सुही होई ॥२६॥ इति श्रीगणधरदेवस्तुतिनामकं चतर्थ स्मरणम् ।
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॥ अथ गुरुपारतन्त्र्यनामकं पञ्चमं स्मरणम् ॥
मय-रहियं गुण-गण-रयण, सायरं सायर पणमिऊण। सुगुरु-जण-पारतंतं, उवहिव्व थुणामि तं चेव ॥१॥ निम्महिय-मोह-जोहा, निहय-विरोहा पणद-संदेहा। पणयंगि-वग्गदाविप्र-सुह-संदोहा सगुण-गेहा ॥२॥ पत्तसुजइत्त-सोहा,समत्त-पर-तित्थ जणिय-संखोहा । पडिभग्ग-मोह-जोहा, दसिय-सुमहत्थ-सत्योहा ॥३॥ परिहरिअ-सत्थ-वाहा, हय-दुह-दाहा सिवंब-तरु-साहा । संपाविअ-सुह-लाहा, खोरो
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