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गणधरदेव - स्तुतिरूपं चतुर्थ स्मरणम् ६५ वित्तपालया नव ग्गहा स-नक्खत्ता । जोइणिराहु-ग्गह- काल-पास कुलिश्रद्ध-पहरेहिं ॥ १८ ॥ सहकाल - कंटएहिं सविट्टि वच्छेहिं कालवेलाहिं । सवें सव्वत्थ सुहं दिसन्तु सव्वस्स सङ्घस्स ॥१६॥ भवणवई वाणमन्तर, जोइस-वेमा-शिप्रा य जे देवा । धरणिन्द - सक्क-सहित्रा, दलन्तु दुरियाई तित्यस्स ॥ २० ॥ चक्क जस्स जलं तं, गच्छइ पुरओ पणा - सिय-तमोहं । तंतित्थस्स भगवओ, नमो नमो वद्धमाणस्स ॥ २१ ॥ सो जयउ जियो वीरो, जस्सज वि सासणं जए जयइ । सिद्धि-पह - सासणं कुपह- नासणं सव्वभय-महणं ॥ २२ ॥ सिरि-उसभसेरा - पहा, हय-भय-निवहा दिसन्तु तित्थस्स । सव्व-जिगाण गणहारिणोऽहं वञ्चियं सव्वं ॥ २३ ॥ सिरि- - वद्धमाण- तित्याहिवेण तित्थं समप्पियं जस्स । सम्मं सुहम्म- सामी, दिसउ सुहंस यलसंघस्स ॥ २४ ॥ पयईए भदिया जे, भद्दाणि
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