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अभय रत्नसार ।
जक्खा, गोमुह-मायङ्ग-गयमुह-पमुक्खा । सिरिबम्भसन्तिसहिया, कय-नय-रक्खा सिवं दिंतु ॥ ११ ॥ अंबा पडिहडिम्बा सिद्धा सिद्धाइया पत्रयणस्स । चक्केसरि वइरुडा, सन्ति-सुरा दिसउ सुक्खाणि ॥१२ | सोलस विज्जा - देवीउ, दिन्तु सङ्घस्स मङ्गलं विउलं । अच्छुत्ता-सहिआओ, विस्सुम सुयदेवयाइ समं ॥ १३॥ जिसासण कय रक्खा जक्खा चउवीस- सासणसुरावि । सुहभावा संतावं, तित्थस्स सया पणासन्तु ॥ १४ ॥ जिण पवयणम्मि निरया, विरया कुपहाउ सव्वा सव्वे । वेयावच्चकरावि अतित्थरस हवन्तु सन्तिकरा ||१५|| जिस समय - सिद्धसुमग्ग- वहिय भव्वाण जणिय-साहज्जा । गीयरई गीजसो, सपरिवारो सिवं दिसउ || १६|| गिह-गुत्त- खित्त-जल-थल -वण-पत्रयवासी देवदेवीओ | जिण सासरण - द्विआणं, दुहाणि सव्वाणि निहतु ॥ १७॥ दस-दिसिपाला स
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