________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
८७
लघु- अजित - शान्ति-स्तवन । दभिलप्पालप्पमेगं अगं । इय कुनय - विरुद्धं सुप्पसिद्धं च जेसिं, वयणमवयणिज्जं ते जिणें संभरामि ॥ ॥ सरइ तिय- लोए ताव मोहंधयारं, भमइ जयमसरणं ताव मिच्छत्त छरणं । फुरइ फुड फलं तात गाणंसु- पूरो, पयडमजिअ - संति-कारण- सूरो न जाव ॥६॥ अरि करि हरि - तिराहु एह बु- चोराहि वाही,
रुद्द खुद्दोवसग्गा |
समर - डमर - मारी पलयमजि-संती - कित्तणे त्ति जंती, निविडतर - तमोहा भक्खरालुंखि अव्व ॥ १० ॥ निचित्र दुरि दारु दित्त झाणग्गिजाला - परियमित्र गोरं, चिंतित्र जाए रूवं । कण्य-निहस रेहा - कंति-चोर करिजा, चिरथिरमिहलच्छि गाढ - संथंभि - अव्व ॥ ११॥ अडवि - निवडियाणं पत्थिवत्ता सिप्राणं, जलहिलहरि-हीरंतारण गुत्ति-ट्टियागां । जलि - जलण जाला - लिंगिणं च कारणं, जणयइ लहु संतिं संतिनाहाआिण ॥ १२ ॥ हरि - करि - परिकिरणं
For Private And Personal Use Only