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अजित-शान्ति-स्तवन । ७६ थुणामि जिणं संतिं वेहेउ मे ॥ १२ ॥ [ रासोनंदियं ] इक्खाग विदेह-नरीसर नर-वसहा मुणि-वसहा नव-सारय-ससि-सकलाणण विगय-तमा विहअ-रया। अजिउत्तम तेअ-गुणेहिं महा-मुणि-अमिअ-बला विउल-कुला पणमामि ते भव-भय-मूरण जग-सरणा मम सरणं ॥१३॥ (चित्तलेहा ) देव-दाणविंद-चंद-सूर-वंद हट्टतुद-जिटू-परम-लट्र-रूव धंत-रुप्प-पट्ट-सेयसद्ध-निद्ध-धवल-दंतपं-ति संति सत्ति-कित्तिमुत्ति-जुत्ति-गुत्ति पवर, दित्त तेअ-वंद धेश सब-लोअ-भाविअ-प्पभाव णे . पइस मे समाहिं ॥ १४ ॥ (नारायओ) विमल-ससिकलाइरेअ-सोमं, वितिमिर-सूर-कराइरेअ-तेअं। तिअस-वइ गणाइरेअ-रूवं, धरणिधर-प्पवराइरेअ-सारं ॥ १५ ॥ (कुसुमलया ) सत्ते य सया अजियं, सारीरे अ बले अजिअं । तव-संजमे य अजिअं, एस थुणामि जिणमजिअं ॥ १६ ॥
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